Itarsi Genius Planet School बच्चो ने बनाए मिट्टी की गणेश जी
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Genius Planet School Itarsi एक इको-फ्रेंडली पहल :
Itarsi Genius Planet School में श्री विनोद चौधरी और उनके सहयोगियों ने एक विशेष पहल के तहत स्कूल में मिट्टी के गणेश जी बनाने की कार्यशाला का आयोजन किया। इस कार्यशाला का उद्देश्य विद्यार्थियों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करना और उन्हें इको-फ्रेंडली धार्मिक प्रथाओं से परिचित कराना था।
कार्यशाला के दौरान, श्री विनोद चौधरी और उनकी टीम ने बच्चों को मिट्टी से गणेश जी बनाने की तकनीक और प्रक्रिया के बारे में विस्तार से जानकारी दी। यह एक अद्वितीय अवसर था, जिसमें विद्यार्थियों ने अपनी रचनात्मकता और कौशल का उपयोग करके मिट्टी के गणेश जी बनाए। प्रत्येक छात्र ने अपनी पसंद के अनुसार गणेश जी की प्रतिमा को सजाया और उन्हें घर ले जाने के लिए तैयार किया।
मिट्टी से बने गणेश जी न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक हैं, बल्कि ये पर्यावरण के प्रति हमारी जिम्मेदारी को भी दर्शाते हैं। इस पहल के माध्यम से बच्चों को यह समझने का मौका मिला कि कैसे प्राकृतिक सामग्री का उपयोग करके हम पर्यावरण को बचा सकते हैं।
श्री विनोद चौधरी और उनकी टीम के इस सराहनीय कार्य को देखकर संस्था ने उनकी प्रशंसा की और उन्हें धन्यवाद दिया। इस तरह के कार्यक्रम न केवल बच्चों के लिए शिक्षाप्रद होते हैं, बल्कि वे समाज को भी एक महत्वपूर्ण संदेश देते हैं कि कैसे हम अपनी धार्मिक गतिविधियों को पर्यावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करते हुए कर सकते हैं।
संस्था ने श्री विनोद चौधरी और उनकी टीम की इस पहल को अत्यंत सराहा और भविष्य में भी इस प्रकार के इको-फ्रेंडली कार्यक्रमों के आयोजन की उम्मीद जताई। इस कार्यशाला ने न केवल बच्चों को आनंदित किया, बल्कि उन्हें पर्यावरण संरक्षण के महत्व को भी समझाया।
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मिट्टी के गणेश जी का महत्व
मिट्टी के गणेश जी भारतीय धार्मिकता और संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। गणेश चतुर्थी जैसे त्योहारों पर गणेश जी की मिट्टी से बनी मूर्तियाँ स्थापित की जाती हैं, जो न केवल धार्मिक पूजा का हिस्सा हैं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और प्राकृतिक संसाधनों के प्रति सम्मान का भी प्रतीक हैं।
मिट्टी की गणेश मूर्तियाँ बनाने की परंपरा हमारे प्राचीन पूर्वजों की उस समझ और सम्मान को दर्शाती है जो उन्होंने प्रकृति के प्रति प्रकट किया। इन मूर्तियों का निर्माण पूरी तरह से प्राकृतिक सामग्री से किया जाता है, जिससे ये पर्यावरण के लिए पूरी तरह से सुरक्षित होती हैं। जब पूजा के बाद इन मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है, तो ये मूर्तियाँ मिट्टी में मिलकर धरती के पोषक तत्वों को पुनः प्रदान करती हैं, जिससे पर्यावरण को किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं पहुँचता। इस तरह की मूर्तियाँ धरती को सहेजने के साथ-साथ प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने में सहायक होती हैं।
मिट्टी के गणेश जी की मूर्तियों में तुलसी और अन्य पेड़ों के बीज डालने की परंपरा विशेष महत्व रखती है। तुलसी, जिसे भारतीय संस्कृति में पूजा और औषधीय उपयोग के लिए जाना जाता है, उसके बीजों का प्रयोग मूर्तियों में करने से कई लाभ होते हैं। तुलसी का पौधा न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद होता है। जब गणेश मूर्तियों में तुलसी के बीज डाले जाते हैं, तो विसर्जन के दौरान ये बीज मिट्टी में समाहित हो जाते हैं, जिससे नए पौधे उगते हैं। इस प्रक्रिया के माध्यम से, पूजा के बाद भी धार्मिक और पर्यावरणीय योगदान जारी रहता है।
इसके अतिरिक्त, अन्य पेड़ों के बीज जैसे नीम, पीपल और अश्वगंधा भी मूर्तियों में डाले जाते हैं। नीम के बीज की सहायता से उगने वाले पेड़ कीट नियंत्रण और जलवायु प्रबंधन में सहायक होते हैं। पीपल का वृक्ष वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा को बढ़ाता है और अश्वगंधा का पौधा स्वास्थ्य लाभ के लिए जाना जाता है। इन बीजों के प्रयोग से मूर्तियाँ पर्यावरणीय दृष्टिकोण से और भी महत्वपूर्ण हो जाती हैं, क्योंकि ये पौधे प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने में योगदान करते हैं।
मिट्टी के गणेश जी की पूजा और मूर्तियों में तुलसी व अन्य पेड़ों के बीज डालने की परंपरा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह पर्यावरणीय जिम्मेदारी और संरक्षण के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को भी दर्शाती है। यह परंपरा हमें सिखाती है कि कैसे हम अपने धार्मिक कृत्यों को प्रकृति के साथ जोड़ सकते हैं और एक स्थायी और हरित भविष्य की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं। इस प्रकार, गणेश जी की मिट्टी से बनी मूर्तियाँ सिर्फ पूजा का माध्यम नहीं हैं, बल्कि यह एक ऐसा सामाजिक और पर्यावरणीय संदेश देती हैं, जो हमारी संस्कृति और प्रकृति के बीच के संबंध को और भी गहरा करता है।
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